महाराणा प्रताप: स्वाभिमान का अमिट प्रतीक

जब बात वीरता, आत्मसम्मान और देशभक्ति की होती है, तो महाराणा प्रताप का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। उन्होंने कभी ताज या सिंहासन को जीवन का उद्देश्य नहीं बनाया — उनका उद्देश्य था सम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा।

महाराणा प्रताप मेवाड़ के ऐसे शासक थे जिन्होंने मुगलों की ताकत के आगे कभी सिर नहीं झुकाया। जब पूरा देश अकबर की ताकत के आगे घुटने टेक रहा था, तब प्रताप जंगलों में रहकर, घास की रोटियाँ खाकर भी स्वतंत्रता की मशाल जलाए रखे।

उनका प्रिय घोड़ा चेतक केवल एक जानवर नहीं था, बल्कि वफादारी और बलिदान का प्रतीक बन गया। हल्दीघाटी की लड़ाई में घायल होने के बावजूद चेतक ने महाराणा को सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया — और वही उसकी अंतिम यात्रा भी बनी।

महाराणा प्रताप का जीवन हमें सिखाता है कि शान-ओ-शौकत से बड़ा होता है स्वाभिमान। उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया, न सत्ता के लिए, न सुविधा के लिए।

आज जब हम आज़ाद भारत में साँस ले रहे हैं, हमें यह याद रखना चाहिए कि यह आज़ादी ऐसे महान योद्धाओं की देन है, जिन्होंने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।

“जिस मिट्टी में प्रताप जैसे सपूत जन्म लेते हैं, वो कभी मरती नहीं – वो किंवदंती बन जाती है।”

महाराणा प्रताप केवल एक नाम नहीं, एक प्रेरणा हैं – हर उस इंसान के लिए जो संघर्ष करता है, डटकर खड़ा रहता है और अपने आत्मसम्मान को कभी मरने नहीं देता।

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