3 महीने, कई हादसे – अब और कितनी जानें जाएंगी?
साल की शुरुआत को बस तीन महीने ही हुए हैं, लेकिन हमारे देश ने एक के बाद एक इतने दुखद हादसे देख लिए हैं कि दिल भारी हो जाता है।
सबसे पहले जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ हमला, जिसमें हमारे बहादुर जवान शहीद हो गए। फिर बेंगलुरु की भीड़ में भगदड़ मची और कई मासूम जिंदगियां चली गईं। इसके बाद मुंबई की लोकल ट्रेन में हादसा हुआ, जिसने कई परिवारों को तोड़ दिया। और अब अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश ने पूरे देश को हिला कर रख दिया।
हर बार एक जैसी ही बातें होती हैं –
“मासूम जिंदगियाँ कुछ ही पलों में चली जाती हैं।””लोग चले जाते हैं, लेकिन उनकी यादें और सवाल रह जाते हैं।”
इन सब हादसों से एक बात साफ है – हम सिर्फ इंसान नहीं खो रहे, हम अपनी शांति और सुरक्षा की भावना भी खोते जा रहे हैं।हर दिन एक नई हेडलाइन बनती है, लेकिन उसके पीछे की कहानियाँ कभी नहीं मिटतीं।
अब समय आ गया है कि हम सिर्फ दुख मनाने के बजाय जाग जाएं।
सरकार, सिस्टम और समाज – सबको मिलकर सोचना होगा कि ऐसी घटनाएँ बार-बार क्यों हो रही हैं और इन्हें कैसे रोका जाए।
क्योंकि अगली हेडलाइन फिर किसी का दिल न तोड़ दे – इसके लिए अभी कुछ करना जरूरी है।